झुंझुनू में प्रशासनिक कार्रवाई या राजनीतिक टारगेटिंग?
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| काटली नदी अतिक्रमण कारवार्ई |
झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी उपखंड में काटली नदी क्षेत्र में हुई अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना किसी पूर्व सूचना के प्रशासन ने गरीब किसानों और मजदूर परिवारों के मकान तोड़ दिए। इस कार्रवाई से दर्जनों परिवार बेघर हो गए और खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो गए।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह कार्रवाई न्यायसंगत नहीं बल्कि राजनीतिक भेदभाव के आधार पर की गई। एक ही नदी क्षेत्र में बसे कई घरों को छोड़ दिया गया, जबकि गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को निशाना बनाया गया।
बिना नोटिस के कार्रवाई: क्या यही है कानून?
पीड़ित परिवारों का कहना है कि:-
- कोई लिखित नोटिस नहीं दिया गया
- 10 दिन पहले सूचना देने का नियम पालन नहीं हुआ
- खड़ी फसलों पर ट्रैक्टर चला दिए गए
- बिजली कनेक्शन काट दिए गए
जब सरकार ने पहले बिजली कनेक्शन दिए, बिल वसूले, तो फिर आज उसी जगह को अवैध बताकर उजाड़ना कितना उचित है? यही सबसे बड़ा सवाल है।
40-50 साल से बसे लोग आज बेघर
कई परिवारों का कहना है कि वे पिछले 40-50 वर्षों से इसी स्थान पर रह रहे हैं। यहां तक कि बुजुर्गों ने बताया कि उन्होंने नदी को बहते हुए कभी नहीं देखा।
एक 80 वर्षीय बुजुर्ग किसान ने कहा कि उन्होंने अपनी 60 बीघा जमीन में लाखों रुपये खर्च कर खेती की थी, लेकिन एक ही दिन में सब नष्ट हो गया।
आज की स्थिति: तंबू, ठंड और भूख
अतिक्रमण हटाने के बाद जो हालात बने हैं, वे बेहद दर्दनाक हैं:
- परिवार तंबू में रहने को मजबूर
- छोटे बच्चे खुले में सो रहे हैं
- न बिजली है, न पानी
- पशु भी भूखे और बीमार
- पढ़ाई पूरी तरह प्रभावित
लोगों को रात में न सोने की जगह है, न खाना पकाने की सुरक्षित व्यवस्था। महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा परेशान हैं।
क्या कार्रवाई सभी पर समान रूप से हुई?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि:-
- एक विशेष पार्टी से जुड़े लोगों की जमीन नहीं तोड़ी गई
- कुछ प्रभावशाली लोगों की फसल और मकान सुरक्षित रहे
- केवल गरीब और कमजोर वर्ग को टारगेट किया गया
अगर नदी अतिक्रमण है, तो फिर पूरी नदी पर समान कार्रवाई क्यों नहीं हुई? सिर्फ 400 मीटर में ही कार्रवाई क्यों सीमित रही, जबकि आगे कई किलोमीटर तक अतिक्रमण मौजूद है?
पुनर्वास और मुआवजा: प्रशासन की जिम्मेदारी
पीड़ितों की मुख्य मांगें हैं:
- सभी प्रभावित परिवारों को पुनर्वास दिया जाए।
- नष्ट फसलों का मुआवजा मिले
- बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य की व्यवस्था हो
- भविष्य में बिना नोटिस ऐसी कार्रवाई न हो
लोगों का कहना है कि अगर पहले वैकल्पिक व्यवस्था की जाती, तो यह मानवीय संकट पैदा नहीं होता।
प्रशासन और सरकार से अपील
यह सिर्फ अतिक्रमण का मामला नहीं, बल्कि मानवता और संवेदनशीलता का भी सवाल है।
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि:-
- निष्पक्ष जांच कराई जाए।
- दोषियों पर कार्रवाई हो
- पीड़ित परिवारों को तुरंत राहत मिले
गरीबों का आशियाना उजाड़ना आसान है, लेकिन उनकी जिंदगी फिर से बसाना प्रशासन की जिम्मेदारी है।
काटली नदी की यह कार्रवाई केवल जमीन हटाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने कई परिवारों की जिंदगी उजाड़ दी। अब जरूरत है संवेदनशील निर्णय, न्यायपूर्ण कार्रवाई और मानवीय दृष्टिकोण की। अगर प्रशासन समय रहते नहीं जागा, तो यह मुद्दा और भी गंभीर रूप ले सकता है।
